यदि पूजा पाठ से किसी को कोई हानि महसूस होती है तो यह एक दुर्भाग्य की बात है। जन्म कुंडली में शनि चंद्र एक साथ बैठे हों तो इस तरह के वहम जातक को हो सकते हैं। ये एक वहम ही है। कारण यह है कि हर अच्छी चीज विपरीत हो जाती है।
इन्हें कुछ ऐसे अनुभव होते हैं जिसकी वजह से ये एक धारणा ही बना लेते हैं। ये धारणा इतनी मजबूत होती है कि इन्हें आभास ही नहीं होता कि ये गलत भी हो सकते हैं।
फिर भी कुंडली में राहु और गुरु का एक साथ होना इस बात का संकेत है कि सकारात्मक ऊर्जा के संपर्क में आने पर आप असहज महसूस करेंगे।
समझने की बात इतनी सी है कि असहज होना नहीं है बल्कि समझना है कि कितनी नकारात्मक ऊर्जा हमारे शरीर में बसी हुई है जिसे बाहर निकलना मंजूर ही नहीं। इस ऊर्जा को बस यूँ ही पड़े रहना है आपके शरीर का रोग बनकर।
परन्तु निरंतर अभ्यास और साहस के बल पर आप इससे जीत सकते हैं। ये नकारात्मक ऊर्जा आपको पहले हफ्ते ही महसूस होगी। फिर इसे आपके शरीर से जाना होगा। गुरु के सान्निध्य में ये ऊर्जा जल्दी चली जाएगी।
और कोई हानि साधना और उपासना के मार्ग में दृष्टिगोचर नहीं होती। हाँ लाभ हैं। लाभ अनंत हैं और जितने आप सोच सकते हैं उतने काम आप अपनी साधना के बल पर कर सकते हैं। जो नहीं पाया है ब्रह्माण्ड से वो मांग सकते हैं। बस ब्रह्माण्ड की भाषा सीखनी होगी। और वो भाषा है मंत्र साधना।